मरकर भी अमर हो गये-४४
रानी दुर्गावती, अहिल्याबाई एवं लक्ष्मीबाई हमारे भारतवर्ष के
इतिहास में ऐसा स्थान प्राप्त कर चुकी हैं कि हर स्त्री को अपने स्त्री
होने पर गौरव हो सकता है । आज जब नारी को पददलित- अपमानित-लज्जाहीन किया जा
रहा है, इन तीनों के पराक्रम से-एकाकी पुरुषार्थ, बड़े-चढ़े मनोबल से किए गए
कर्त्तत्त्व हर नारी को प्रेरणा देते हैं अन्याय से लड़ने के लिए । मात्र
विगत डेढ़ सौ वर्षों का इतिहास है इनका, किंतु ये सभी अमर हो, प्रेरणा का
स्रोत बन गईं । अवंतिका बाई गोखले, सरोजिनी नायडू कस्तुरबा गांधी, जानकी
मैया भी इसी तरह हमारे लिए सदा प्रेरणा का स्रोत रहेंगी । समाज
सेवा-राष्ट्र की सेवा-परतंत्रता से मुक्ति में भागीदारी में गृहस्थ जीवन
किसी भी तरह बाधक नहीं, ये इसका प्रमाण है । श्रीमती एनी बेसेंट एवं भगिनी
निवेदिता (कुमारी नोबुल) मूलत: तन से विदेशी थीं, किंतु इनका अंतरंग
भारतीयता के रंग में रँगा था । दोनों ने ही अपना पूरा जीवन तत्कालीन
परतंत्र भारत में परिस्थितियों को अपने- अपने मंच से, अध्यात्म के माध्यम
से सुधारने में नियोजित कर दिया । जहाँ एनी बेसेंट "थियोसेफी" के रूप में,
सर्वधर्म समभाव के प्रतीक के आदोलन के सर्वेसर्वा के रूप में उभरीं, वहाँ
स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने अपनी गुरु- आराध्यसत्ता के
कार्यों को-नारी जागरण के कार्यों को संपादित करने में अभावग्रस्त
परिस्थितियों में रहकर स्वयं को खपा दिया । फ्लोरेंस नाइटिंगेल नर्सिंग
आदोलन की प्रणेता हैं । सेवा एक ऐसा धर्म है, जो नारी अपनी संवेदना का
स्पर्श देकर भली भांति संपन्न कर सकती हैं, इसका उदाहरण बनीं नाइटिंगेल ।
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