गहना कर्मणोगति (कर्मफल का सुनिश्चित सिद्धांत्)
निःसंदेह कर्म की गति बड़ी गहन है । धर्मात्माओं को दुःखपापियों
को सुख, आलसियों को सफलता, उधोगशीलों को असफलता, विवेकवानों पर विपत्ति,
के यहाँ संपत्ति, दंभियोंको प्रतिष्ठा, सत्यनिष्ठों को तिरस्कार प्राप्त
होने के अनेक उदाहरण इस दुनियाँ में देखे जाते हैं कोई जन्म से ही वैभव
लेकर पैदा होते हैं, किन्हीं को जीवन भर दुःख ही दुःख भोगने पड़ते हैं? सुख
और सफलता के जो नियम निर्धारित हैं, वेसर्वाश पूरे नहीं उतरते ।
इन सब बातों को देखकर भाग्य, ईश्वर की मर्जी, कर्म कीगीत के संबंध में नाना
प्रकार के प्रश्न और संदेहों की झड़ी लगजाती है । इन संदेहों और प्रश्नों
का जो समाधान प्राचीन पुस्तकों में मिलता है, उससे आज के तर्कशील युग में
ठीक प्रकार समाधान नहीं होता । फलस्वरूप नई पीढी, उन पाश्वात्य
सिद्धांतोंकी ओर झुकती जाती है, जिनके द्वारा ईश्वर और धर्म को ढोंग और
मनुष्य को पंचतत्त्व निर्मित बताया जाता है एवं आत्मा के अस्तित्व से इंकार
किया जाता है कर्म फल देने की शक्ति राज्यशक्ति के अतिरिक्त और किसी में
नहीं है ईश्वर और भाग्य कोई वस्तु नहीं है आदि नास्तिक विचार हमारी पीढ़ी
में घर करते जा रहे हैं|
इस पुस्तक में वैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टिकोण से कर्मकी गहन गति पर विचार
किया गया है और बताया गया है किजो कुछ भी फल प्राप्त होता है, वह अपने कर्म
के कारण ही है । हमारा विचार है कि पुस्तक कर्मफल संबंधी जिज्ञासाओं का
किसी हद तक समाधान अवश्य करेगी |
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