निर्भय बनें, शान्त रहें
कितना ही प्रयत्न करने पर भी, कितनी ही सावधानी बरतने पर भी, ऐसा
संभव नहीं कि मनुष्य के जीवन में अप्रिय परिस्थितियाँ प्रस्तुत न हों ।।
यहाँ सीधा और सरल जीवन किसी का भी नहीं है ।। अपनी तरफ से मनुष्य शांत,
संतोषी और संयमी रहे, किसी से कुछ भी न कहे, कुछ न चाहे, तो भी दूसरे लोग
उसे शांतिपूर्वक समय काट ही लेने देंगे- इसका कोई निश्चय नहीं ।। कई बार तो
सीधे और सरल व्यक्तियों से अधिक लाभ उठाने के लिए दुष्ट, दुर्जनों की
लालसा और भी तीव्र हो उठती है ।। कठिन प्रतिरोध की संभावना न देखकर सरल
व्यक्तियों को सताने में दुर्जन कुछ न कुछ लाभ ही सोचते हैं ।। सताने पर
कुछ न कुछ वस्तुएँ मिल जाती हैं और दूसरों को आतंकित करने, डराने का एक
उदाहरण उनके हाथ लग जाता है ।।
हम सब के शरीर अब जैसे कुछ बन गए हैं उनमें पग- पग पर कोई बीमारी उठ खड़ी
होने की आशंका रहती है ।। प्रकृति का संतुलन एटम- बमों के परीक्षणों से,
वृक्ष- वनस्पतियों के नष्ट हो जाने से, कारखानों के धुएँ से हवा गंदी होते
रहने से बिगड़ता चला जा रहा है ।। उसके कारण दैवी विपत्ति की तरह कई बार
बीमारियों फूट पड़ती हैं और संयमी लोग भी अपना स्वास्थ्य खो बैठते हैं ।।
खाद्य पदार्थों का अशुद्ध स्वरूप में प्राप्त होना, उनमें पोषक तत्त्व घटते
जाना, आहार- विहार की अप्राकृतिक परंपरा के साथ घसीटते चलने की विवशता आदि
कितने ही कारण ऐसे हैं जो संयमी लोगों को भी बीमारी की ओर घसीट ले जाते
हैं ।।
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