व्यक्तित्व परिष्कार की साधना
मनुष्य शरीर परमात्मा का सर्वोपरि अनुग्रह माना गया है, पर यह उस
खजाने की तरह है, जो गड़ा तो अपने घर में हो, पर जानकारी रत्ती भर न हो।
यदि किसी के मन में अध्यात्म साधनाओं के प्रति श्रद्धा और जिज्ञासा का
अंकुर फूट पड़े, तो उस परमात्मा के छिपे खजाने की जानकारी दे देने जैसा
प्रत्यक्ष वरदान समझना चाहिए। ऐसे अवसर जीवन में बड़े सौभाग्य से आते हैं।
इस पुस्तिका को आप अपने लिए परम पूज्य गुरुदेव का ‘परा संदेश’’ समझकर पढ़ें
और निष्ठापूर्वक अनुपालन करें।
व्यक्तिगत रूप से साधनायें अन्तःकरण की प्रसुप्त शक्तियों का जागरण करती
हैं। उनका जागरण जिस अभ्यास से होता है, उसे साधना-विज्ञान कहते हैं। इस
क्षेत्र में जितना आगे बढ़ा जाये, उतने दुर्लभ मणिमुक्तक करतलगत होते चले
जाते हैं। पर इस तरह की साधनायें समय-साध्य भी होती है, तितीक्षा साध्य भी।
परम पू. गुरुदेव ने आत्म शक्ति से उनका ऐसा सरल स्वरूप विनिर्मित कर दिया
है, जो बाल-वृद्ध, नर-नारी सभी के लिए सरल और सुलभ है, लाभ की दृष्टि से भी
ये अभ्यास असाधारण है।
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