विश्व वसुधा जिनकि ऋणि रहेगी-५२
परमपूज्य गुरुदेव की लेखनी से वाड्मय के इस खंड में इसी तरह के
महामानवों के जीवन- प्रसंगों को लिया गया है ।। महामनीषी कल्लट, खलील
जिब्रान, रवींद्रनाथ टैगोर, विष्णु शर्मा, दांते, बाबू गुलाब राय से लेकर
शोपेन हॉवर, विलियम शेक्सपीयर, पियर्सन, रूसो, टॉल्स्टॉय आदि तक विश्व के
मूर्द्धन्य दार्शनिक चिंतक मनीषी एवं विचार- क्रांति के द्रष्टा महामानवों
के जीवन- चरित्रों को प्रथम अध्याय में स्थान दिया गया है ।। जन जागृति के
प्रणेता युग मनीषियों को दूसरे अध्याय में लिया गया है ।। मानवी चिंतन
चेतना को जाग्रत कर उसे निश्चित दिशा एवं गति प्रदान करने का कार्य जिन
महामानवों ने किया है, उनमें से अधिकांश के हृदयोद्गार कविता की निर्झरिणी
के रूप में प्रस्कुटित हुए हैं ।। महाकवि कालिदास, तुलसीदास, सूरदास,
मीराबाई आदि से लेकर दांते, चंदवरदायी एवं निराला तक समय के पृष्ठों पर
अग्नि- काव्य लिखने वाले साहित्यसाधको के व्यक्तित्व एवं कृतित्व आज भी
जनमानस में रचे बसे हैं और उन्हें अनुप्राणित- उद्देलित करते रहते हैं ।।
अर्नेस्ट जोन्स, पुश्किन, जाइगेर, इलियट, पाब्लोनेरूदा जैसे पाश्चात्य
सद्ज्ञान साधकों के जीवन- प्रसंग भी जन- जाग्रति के प्रणेताओं में अग्रणी
हैं ।।
परमपूज्य गुरुदेव का सदैव यही उद्देश्य रहा है कि सार्वभौम एकता एवं वसुधैव
कुटुम्बकम् का आदर्श साहित्य तक ही सीमित रहने से आगे बढ़कर जन- जन के
व्यवहार में उतारा जाय और उसी एकता के आधार पर बाह्य एवं आंतरिक जीवन की
सुख- शांति को उपलब्ध किया जाय ।। यही कारण है कि भारतीय समाज के प्राय
समस्त धर्मग्रंथों- वेदों से लेकर पुराणों तक अंतकरण को झकझोरकर रख देने
वाली मर्मस्पर्शी, सरल भाषा शैली में अनुवादित और प्रकाशित किए गए हैं ।।
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