गायत्री की पंचविधि दैनिक साधना
गायत्री मंत्र से आत्मिक कायाकल्प हो जाता है । इस महामंत्र की
उपासना आरम्भ करते ही साधक को ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे आन्तरिक क्षेत्र
में एक नई हलचल एवं रद्दोबदल आरम्भ हो गई है । सतोगुणी तत्त्वों की
अभिवृद्धि होने, दुर्गुण, कुविचार, दुःस्वभाव एवं दुर्भाव घटने आरम्भ हो
जाते हैं और संयम, नम्रता, पवित्रता, उत्साह, स्कूर्ति, श्रमशीलता, मधुरता,
ईमानदारी, सत्य-निष्ठा, उदारता, प्रेम, सन्तोष, शान्ति, सेवा-भाव,
आत्मीयता आदि सद्गुणों की मात्रा दिन-दिन बड़ी तेजी से बढ़ती जाती है ।
फलस्वरूप लोग उनके स्वभाव एवं आचरण से सन्तुष्ट होकर बदले में प्रशंसा,
कृतज्ञता, श्रद्धा एवं सम्मान के भाव रखते हैं और समय-समय पर उसकी अनेक
प्रकार से सहायता करते हैं । इसके अतिरिक्त ये सद्गुण स्वयं मधुर होते हैं,
जिस हृदय में इनका निवास होगा, वहाँ आत्म-संतोष की परम शान्तिदायक शीतल
निर्झरणी सदा बहती रहेगी ।
गायत्री साधना से साधक के मन: क्षेत्र में असाधारण परिवर्तन हो जाता है ।
विवेक, तत्त्वज्ञान और ऋतम्भरा बुद्धि की अभिवृद्धि हो जाने के कारण अनेक
अज्ञान-जन्य दुःखो का निवारण हो जाता है । प्रारब्धवश अनिवार्य कर्मफल के
कारण कष्टसाध्य परिस्थितियाँ हर एक के जीवन में आती रहती हैं । हानि, शोक,
वियोग, आपत्ति, रोग, आक्रमण, विरोध, आघात आदि की विभिन्न परिस्थितियों में
जहाँ साधारण मनोभूमि के लोग मृत्युतुल्य कष्ट पाते हैं, वहाँ आत्मबल
सम्पन्न गायत्री साधक अपने विवेक, ज्ञान, वैराग्य, साहस, आशा, धैर्य, संयम,
ईश्वर-विश्वास के आधार पर इन कठिनाइयों को हँसते-हँसते आसानी से काट लेता
है । बुरी अथवा साधारण परिस्थितियों में भी अपने आनन्द का मार्ग ढूँढ
निकालता है और मस्ती एवं प्रसन्नता का जीवन बिताता है ।
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