Saturday, 8 April 2017

विचार सार एवं सुक्तियां -70

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=407शूक्तियाँ छोटे तीर के समान हैं, जो बड़े गंभीर घाव करने में, मर्मस्थल को स्पर्श करने में सक्षम हैं ।। यह न केवल याद करने में सुगम होती हैं, बल्कि हृदयस्पर्शी इस सीमा तक होती हैं कि जीवन को बदल देने तक की सामर्थ्य इनमें है ।। परमपूज्य गुरुदेव ने समय- समय पर अपनी अमृतवाणी में भी तथा लेखनी के माध्यम से भी इस तथ्य को समझाने की कोशिश की है कि भारतीय संस्कृति की इस सूत्र- प्रणाली रूपी विशेषता को यदि हृदयंगम कर लिया जाए तो ज्ञान की विशिष्ट पूँजी हस्तगत हो सकती है ।। इस खंड में वेदों की स्वर्णिम सूक्तियाँ भी हैं, सांप्रदायिक सद्भाव की प्रतीक विभिन्न धर्मग्रंथों की वाणी भी, शास्त्रमंथन नवनीत भी, तो महापुरुषों के छोटे- छोटे वाक्यों के रूप में अमृतवाणी, ऋषि- चिंतन भी है एवं विवेक- सतसई भी ।।

बड़ी विविधता का समुच्चय यह खंड स्वयं में विलक्षण है ।। एक स्थान पर उन सभी विचारों का संकलन है, जो मनुष्य को महान बनाने की सामर्थ्य रखते हैं ।। वेदों की शूक्तियों को पूज्यवर ने आत्मसत्ता- परमसत्ता, सत्य और सद्विचार, ब्राह्मणत्त्व, सज्जनता और सद्व्यवहार, उन्नतशील जीवन, प्रेम व कर्त्तव्यपरायणता की महत्ता, दुष्प्रवृत्तियों का शमन, अर्थव्यवस्था का सुनियोजन, दुष्टता से संघर्ष, इन छोटे- छोटे लेखों में बाँटकर परिपूर्ण व्याख्या की है ।। स्वाध्याय में प्रमाद न करो, हे देवो! गिरे हुओं को उठाओ, क्रोध को नम्रता से शांत करो, सत्कर्म ही किया करो, किसी का दिल न दुखाओ- ये शूक्तियाँ वेदों में स्थान- स्थान पर आई हैं ।। संस्कृत की सरल हिंदी देकर जो व्याख्या प्रस्तुत की गई है, उससे विषय सीधा अंदर तक प्रवेश कर जाता है ।।

" ऋषि- चिंतन " परमपूज्य गुरुदेव के मौलिक विचारों का प्रस्तुतीकरण है ।। 

Buy online: 

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=407

 


No comments:

Post a Comment