पतन निवारण
मनुष्य जीवन की गरिमा को समझा नहीं जा सका तो उसे सबसे बड़ा
दुर्भाग्य कहना चाहिए । सृष्टि के समस्त प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य को जो
मिला है उसे अतुलनीय ही कह सकते हैं । परम प्रभु ने अपने बड़े बेटे को जो
उत्तराधिकार सौंपा है, उसका प्रत्येक पक्ष अद्भुत है । सामान्य दृष्टि से
तो हम भी पेट और प्रजनन में निरंतर व्यस्त अगणित समस्याओं से उलझे और
संकटों के दल-दल में फँसे नगण्य जीवधारी भर हैं । अन्य प्राणी निर्वाह और
सुरक्षा भर की समस्याएँ अपने पुरुषार्थ से हल करते और चैन से दिन गुजारते
हैं । मनुष्य आंतरिक उलझनों, महत्त्वाकांक्षाओं, मनोविकारों और प्रतिकूल
परिस्थितियों से इतना उद्विग्न रहता है कि दिन गुजारने भारी पड़ते हैं ।
जिंदगी की लाश बड़ी कठिनाई से ही ढोना संभव हो पाता है ।
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