मंदिर जन-जागरण के केंद्र बने
भारतवर्ष में लगभग ६ लाख मंदिर हैं, जिनमें पुजारी नियत हैं और
नियमित रूप से सेवा- पूजा की व्यवस्था होती है ।। इनमें से सैकड़ों ऐसे हैं
।। जिनमें दर्जनों कर्मचारी विभिन्न प्रयोजनों के लिए रहते हैं, पर हम
न्यूनतम औसत निकालने के लिए यह मान लेते हैं कि हर मंदिर के पीछे केवल एक
कर्मचारी नियुक्त है ।। यद्यपि हजारों ही मंदिर ऐसे हैं जिनका भोग- प्रसाद,
उत्कृष्ट श्रृंगार, सफाई, रोशनी, मरम्मत आदि का खर्च लाखों रुपया मासिक
है, न्यूनतम औसत भोगप्रसाद, दीपक, मरम्मत तथा पुजारी का वेतन आदि पर कुल
मिलाकर १०० रुपया मासिक मान लिया जाए तो अधिक नहीं वरन् कम से कम ही समझना
चाहिए ।। यह अनुमान तो लगा ही लेना चाहिए कि ६ लाख मंदिरों का खर्च १००
रुपया प्रतिमास के हिसाब से ६ करोड़ रुपया मासिक अर्थात् ७२ करोड़ रुपए
वार्षिक है ।।
विशाल जन- शक्ति और विपुल धन- शक्ति
भारतवर्ष में ५६७१६९ गाँव और २६९० शहर हैं ।। कुल मिलाकर इनकी संख्या ६ लाख
होती है इनमें हर जगह एक मंदिर का हिसाब तो मानना ही चाहिए ।। मामूली
गाँवों और कस्बों में कई- कई संप्रदाय के कई देवताओं के कई- कई मंदिर होते
हैं ।। बड़े शहरों में तो उनकी संख्या सैकड़ों होती है, फिर भी औसतन हर गाँव
के पीछे एक का औसत मान लिया जाए तो इनकी संख्या भी ६ लाख हो जाती है ।।
हर मंदिर के पीछे कई- कई कर्मचारी होते हैं पुजारी, महंत, मुनीम, चौकीदार
माली आदि ।। कितने ही बड़े मंदिरों में तो सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं ।।
दो- दो तीन- तीन तो हजारों में होंगे फिर भी न्यूनतम एक पुजारी हर मंदिर के
पीछे मानना ही होगा ।। इस प्रकार ६ लाख मंदिरों में ६ लाख पुजारी हो गए ।।
यह सब गहस्थ होते हैं ।। अन्य उद्योगों में लगे हुए व्यक्तियों के घर वाले
भी अपने काम- धंधों में सहायक होते हैं ।।
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