क्रान्ति की करवट
"मनुष्यता समय-समय पर ऐसी आश्चर्यजनक करवटें लेती रही है, जिसके
अनुसार देव मानवों का नया बसन्त, नयी कोपलें, नई कलियों और नए फल-फूलों की
सम्पदा लेकर सभी दिशाओं में अट्टहास करता दीख पड़ता है ।"
क्रान्ति की ये करवटें परिवर्तन का प्रचण्ड प्रवाह उत्पन्न करती हैं ।
जिसमें जाने- अनजाने, चाहे-अनचाहे सभी इसके साथ बहने के लिए विवश हो जाते
हैं । स्वाधीनता संग्राम के दिनों में भी ऐसी ही हलचलें, ऐसा ही प्रवाह
उत्पन्न हुआ था । इसके बारे में उन दिनों महाराष्ट्र के सन्त गजानन महाराज
से उनके एक भक्त ने पूछा- महाराज! इन दिनों जो हलचलें हो रही हैं, उससे
लगता है कि कोई बड़ी क्रान्ति होने को है ।
गजानन महाराज पहले तो गम्भीर बने रहे फिर बोले- यह तो बस पृष्ठभूमि है ।
बड़ी क्रान्ति-महाक्रान्ति का बीजारोपण तो सन् १९११ में अवतारी महामानव के
जन्म के साथ होगा । तब देश और दुनिया में ये हलचलें तीव्र से तीव्रतर और
तीव्रतम होती जाएँगी । बड़े विप्लव खड़े होंगे, युद्ध और महायुद्धों की
विभीषिकाएँ जन्म लेगी ।
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