नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
अशुभ समय संसार के इतिहास में अनेक बार आते रहे हैं, पर स्रष्टा
का यह नियम है कि वह अनौचित्य को सीमा से बाहर बढ़ने नहीं देता। स्रष्टा का
आक्रोश तब उभरता है, जब अनाचारी अपनी गतिविधियाँ नहीं छोड़ते और पीडित
व्यक्ति उसे रोकने के लिए कटिबद्ध नहीं होते। यदा- यदा हि धर्मस्य वाली
प्रतिज्ञा का निर्वाह करने के लिए स्रष्टा वचनबद्ध है।
युगसंधि के दस वर्ष दोहरी भूमिकाओं से भरे हुए हैं। प्रसव जैसी स्थिति
होगी। प्रसवकाल में जहाँ एक ओर प्रसूता को असह्य कष्ट सहना पड़ता है, वहाँ
दूसरी ओर संतानप्राप्ति की सुंदर संभावनाएँ भी मन- ही पुलकन उत्पन्न करती
रहती हैं। जिसमें मनुष्य शांति और सौजन्य के मार्ग पर चलना सीखे, कर्मफल की
सुनिश्चित प्रक्रिया से अवगत हो और वह करे, जो करना चाहिए, उस राह पर चले,
जिस पर कि बुद्धिमान को चलना चाहिए।
शान्तिकुञ्ज से उभर रहे एक छोटे प्रवाह ने नवयुग के अनुरूप प्रशिक्षण की
ऐसी व्यवस्था बनाई है, जो कि उसके साधनों को देखते हुए संभव नहीं थी। ऐसी
सिद्धान्त शैली और तर्क प्रक्रिया शान्तिकुञ्ज ने प्रस्तुत की है, जिससे
लोकमान्यता में असाधारण परिवर्तन देखे जा सकते हैं। इन दिनों मानव- शरीर
में प्रतिभावान देवदूत प्रकट होने जा रहे हैं। लोकमानस का परिष्कार कर वे
नवयुग की संभावना सुनिश्चित करेंगे- निश्चित ही बड़भागी बनेंगे।
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