मांसाहार कितना उपयोगी, मनोशारीरिक एवं वैज्ञानिक विश्लेषण
मनुष्यता का लक्षण धर्म है और धर्म का मूल दया में निहित है ।
जिस मनुष्य के हृदय में दया नहीं, वह मनुष्यता के पूर्ण लक्षणोंसे युक्त
नहीं कहा जा सकता । इस दया को मनुष्य की वह करुणा भावना ही माना जाएगा जो
संसार के प्रत्येक प्राणी के लिए बराबर हो । उन मनुष्यों को कदापि दयावान
नहीं कहा जा सकता जोअपनों पर कष्ट अथवा आपत्ति आई देखकर तो दुःखित हो
उठतेहैं किंतु दूसरों के कष्टों के प्रति जिनमें कोई सहानुभूति अथवा
संवेदना नहीं होती । और वे मनुष्य तो कूर अथवा बर्बर की श्रेणी मेंही रखे
जाएँगे जो अपने तुच्छ स्वार्थ के कारण दूसरों को असह्यपीड़ा देते हैं ।
करुणा, दया, क्षमा, संवेदना, सहानुभूति तथा सौहार्द आदि गुणएक ही दया के ही
अनेक रूप अथवा उसकी ही शाखा-प्रशाखाएँ हैं । जब तक जिसमें इन गुणों का
अभाव है, मनुष्य योनि में उत्पन्न होने पर भी उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता ।
इस प्रकार मनुष्यता की परिभाषा करने पर मांसभोजियो परक्रूरता का आरोप आता
है । क्रूरता मनुष्य का नहीं, पाशविकता का लक्षण है । फिर भला इस प्रकार की
पाशविक प्रवृत्ति रखने वाला मनुष्य अपने को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी
किस मुँह से कहता है!
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