रानी दुर्गावती
स्वतंत्रता के लिए प्राण अर्पण करने वाली- रानी दुर्गावती
मानव- सभ्यता के आदिकाल से नारी का कार्यक्षेत्र घर माना गया है ।। वही
संतान की जननी, पालन करने वाली और संरक्षिका है ।। पुरुष को वह जैसा बनाती
है, वह प्राय: वैसा ही बन जाता है ।। इस दृष्टि से यदि उसे मानव जाति की
निर्माणकर्त्री कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है ।। वैसे प्रकृति ने नारी
को सब प्रकार की शक्तियाँ और प्रतिभाएँ पूर्ण मात्रा में प्रदान की हैं,
पर गृह- संचालन की जिम्मेदारी के कारण उसमें मातृत्व और पत्नीत्व के गुणों
का ही विकास सर्वाधिक होता है ।। उसको अपने इस क्षेत्र से बाहर निकलने की
आवश्यकता बहुत कम पड़ती है, पर जब आवश्यकता पड़ती है तो वह अन्य क्षेत्रों
में भी ऐसे महानता के कार्य कर दिखाती है कि दुनिया चकित रह जाती है ।।
यद्यपि वर्तमान समय में परिस्थितियों में परिवर्तन हो जाने के कारण
स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार के पेशों में प्रवेश कर रही हैं और शिक्षा,
व्यवसाय, कला, उद्योग- धंधे, सार्वजनिक सेवा आदि अनेक क्षेत्रों में
पर्याप्त संख्या में स्त्रियाँ दिखाई पड़ने लगी हैं ।। यद्यपि हमारे देश में
अभी यह प्रकृति आरंभिक दशा में है, पर विदेशों में तो करोड़ों स्त्रियाँ सब
प्रकार के जीवन- निर्वाह के पेशों में भाग ले रही हैं ।। यदि यह कहा जाए
कि इंग्लैंड, अमेरिका, रूस आदि देशों की तीन चौथाई से अधिक स्त्रियाँ गृह-
व्यवस्था के अतिरिक्त अर्थोपार्जन और समाज- संचालन के अन्य कार्यो में भी
संलग्न हैं, तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता।।
पर एक क्षेत्र ऐसा अवश्य है, जिसमें हमारे देश तथा अन्य देशों की स्त्रियों
ने बहुत कम भाग लिया है, वह है, सेना और युद्ध का विभाग ।।
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