Thursday, 27 April 2017

देव संस्कृति व्यापक बनेगी सीमित न रहेगी

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देव संस्कृति व्यापक बनेगी सीमित न रहेगी

भारतीय संस्कृति- देव संस्कृति- भारत मात्र एक राष्ट्र नहीं, मानवी उत्कृष्टता एवं संस्कृति का उद्गम केंद्र है ।। हिमालय के शिखरों पर जमी बरफ जलधारा बनकर बहती है और सुविस्तृत धरातल को सरसता एवं हरीतिमा से भरती है ।। भारत धर्म और अध्यात्म का उदयाचल है,जहाँ से सूर्य उगता और समस्त भूमंडल को आलोक से भरता है ।। एक तरह से यह आलोक- प्रकाश ही जीवन है, जिसके सहारे वनस्पतियाँ उगतीं, घटाएँ बरसतीं और प्राणियों में सजीव हलचलें होती हैं ।।

बीज में वृक्ष की समस्त विशेषताएँ सूक्ष्म रूप में छिपी पड़ी होती हैं ।। परंतु ये स्वत: विकसित नहीं हो पातीं ।। उन्हें अंकुरित, विकसित करके विशाल बनाने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं ।। ठीक यही बात मनुष्य के संबंध में है ।। स्रष्टा ने उसे सृजा तो अपने हाथों से है और उसे असीम संवेदनाओं से परिपूर्ण भी बनाया है, पर साथ ही इतनी कमी भी छोड़ी है कि विकास के प्रयत्न बन पड़े तो ही उसे ऊँचा उठाने का अवसर मिलेगा ।। स्पष्ट है कि जिन्हें सुसंस्कारिता का वातावरण मिला, वे प्रगति पथ पर अग्रसर होते चले गए ।। जिन्हें उससे वंचित रहना पड़ा वे अभी भी वन्य प्राणियों की तरह रहते और गयी- बीती परिस्थितियों में समय गुजारते हैं ।। इस प्रगतिशीलता के युग में भी ऐसे वनमानुषों की कमी नहीं, जिन्हें बंदर की औलाद ही नहीं, उसकी प्रत्यक्ष प्रतिकृति भी कहा जा सकता है ।। यह पिछड़ापन और कुछ नहीं, प्रकारांतर से संस्कृति का प्रकाश न पहुँच सकने के कारण उत्पन्न हुआ अभिशाप भर है 

 

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