Monday, 3 April 2017

मनस्विता प्रखरता और तेजस्विता-५७

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=380परमपूज्य गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने सदैव विधेयात्मक चिंतन -सुदृढ़ मनोबल बढाने की दिशा में प्रेरणा देने वाला साहित्य सृजन किया एवं लिखा कि आदमी की प्रखरता व तेजस्विता जो बहिरंग में दृष्टिगोचर होती है इसी मनस्विता की, दृढ़ संकल्पशक्ति की ही एक फलश्रुति है । वे लिखते हैं कि जैसे किसान बीजों को रोपता है एवं अंकुर उगने से लेकर फसल की उत्पत्ति तक एक सुनियोजित क्रमबद्ध प्रयास करता है, उसी प्रकार संकल्प भी एक प्रकार का बीजारोपण है । किसी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए एक सुनिश्चित निर्धारण का नाम ही संकल्प है । अभीष्ट तत्परता बरती जाने पर यही संकल्प जब पूरा होता है तो उसकी चमत्कारी परिणति सामने दिखाई पड़ती है । उज्ज्वल भविष्य के प्रवक्ता परमपूज्य गुरुदेव नवयुग के उपासक के रूप में संकल्पशक्ति के अभिवर्द्धन से तेजस्वी-प्रतिभाशाली समुदाय के उभरने की चर्चा वाड्मय के इस खंड में करते हैं ।

संकल्पशीलता को व्रतशीलता भी कहा गया है । व्रतधारी ही तपस्वी और मनस्वी कहलाते हैं । मन:संस्थान का नूतन नव निर्माण कर पाना संकल्प का ही काम है । संकल्पवानों के प्राणवानों के संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते । सृजनात्मक संकल्प ही व्यवहार में सक्रियता एवं प्रवृत्तियों में प्रखरता का समावेश कर पाते हैं । परमपूज्य गुरुदेव बार-बार संकल्पशीलता के इस पक्ष को अधिक महत्ता के साथ प्रतिपादित करते हुए एक ही तथ्य लिखते हैं कि आज यदि नवयुग की आधारशिला हमें रखनी है तो वह संकल्पशीलों के प्रखर पुरुषार्थ से उनकी तेजस्विता एवं मनस्विता के आधार पर ही संभव हो सकेगी । ऐसे व्यक्ति जितनी अधिक संख्या में समाज में बढ़ेंगे, परिवर्तन का चक्र उतना ही द्रुतगति से चल सकेगा । 

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