Monday, 17 April 2017

धर्म तत्व का दर्शन, मर्म-५३

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धर्म शब्द सम्प्रदाय से भिन्न, बड़ी व्यापक परिभाषा लिए हुए है। जहाँ सम्प्रदाय उपासना विधि, कर्मकाण्डों और रीति-रिवाजों का समुच्चय है वहाँ धर्म एक प्रकार से जीवन जीने की शैली का ही दूसरा नाम है। सम्प्रदायपरक मान्यताएँ देश, काल, क्षेत्र, परिस्थिति के अनुसार बदलती रह सकती हैं, परन्तु धर्म शाश्वत-सनातन् होता है। धर्म की तीन भाग बताए जाते हैं, जिन्हें परस्पर संबद्ध करने पर ही वह समग्र बनता है- ये हैं तत्वदर्शन-ज्ञानमीमांस, नीतिशास्त्र एवं अध्यात्म। धर्मधारणा हरेक के लिए अनिवार्य है एवं उपयोगी भी। धर्म का अवलम्बन निज की सुरक्षा ही नहीं, समाज की अखण्डता के लिए भी जरूरी है। 

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