Thursday, 20 April 2017

युग की पुकार अनसुनी न करें

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=910हमारे सामने एक नया युग चला आ रहा है, इसमें अब संदेह की कुछ भी गुंजाइश नहीं रह गई है।। संसार में जैसी घोर हलचल मची हुई है, संपत्ति, साधनों और भौतिक ज्ञान की असीम वृद्धि के होते हुए मानव- जीवन जिस प्रकार अधिक अशांत और असंतुष्ट बनता जाता है, “मानव मात्र एक है" के तथ्य को समझते हुए विभिन्न राष्ट्रों और जातियों के मतभेद जिस प्रकार तीव्र होते जाते हैं, उससे विदित होता है कि हमारे भीतर, मनुष्य- समाज के भीतर कोई ऐसी गहरी खराबी पैदा हो गई है, जो हमारे सहयोग- सामंजस्य को एक सूत्र बनने के प्रयत्नों को सफल नहीं होने देती और अनेक विषयों में आश्चर्यजनक प्रगति होते हुए हमें सर्वनाश की विभीषिका के निकट घसीटे लिए जा रही है।।

इस परस्पर विरोधी स्थिति का प्रधान कारण यही है कि हमने भौतिक ज्ञान- विज्ञान में जितनी प्रगति की है, उसके मुकाबले में अध्यात्म- ज्ञान और व्यवहार के क्षेत्र में हम कुछ भी आगे नहीं बढ़े, इतना ही नहीं उलटा पीछे हट गये है ।। इससे हमारे भीतर व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना पूर्वापेक्षा बलवती होती जाती है और नवीन वैज्ञानिक उन्नति से लाभ उठाने के लिए जिस सामूहिक भावना की, भ्रातृत्व की, मनोवृत्ति की आवश्यकता है; उसका उदय होने नहीं पाता ।। यही कारण है कि जिन वैज्ञानिक आविष्कारों से यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती थी, वे ही मानव- सभ्यता को जड़- मूल से नष्ट करने की आशंका उत्पन्न कर रहे हैं ।। 

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