विचार सार और सुक्तियां I-69
बड़ी विविधता का समुच्चय यह खंड स्वयं में विलक्षण है ।। एक स्थान
पर उन सभी विचारों का संकलन है, जो मनुष्य को महान बनाने की सामर्थ्य रखते
हैं ।। वेदों की शूक्तियों को पूज्यवर ने आत्मसत्ता- परमसत्ता, सत्य और
सद्विचार, ब्राह्मणत्त्व, सज्जनता और सद्व्यवहार, उन्नतशील जीवन, प्रेम व
कर्त्तव्यपरायणता की महत्ता, दुष्प्रवृत्तियों का शमन, अर्थव्यवस्था का
सुनियोजन, दुष्टता से संघर्ष, इन छोटे- छोटे लेखों में बाँटकर परिपूर्ण
व्याख्या की है ।। स्वाध्याय में प्रमाद न करो, हे देवो! गिरे हुओं को
उठाओ, क्रोध को नम्रता से शांत करो, सत्कर्म ही किया करो, किसी का दिल न
दुखाओ- ये शूक्तियाँ वेदों में स्थान- स्थान पर आई हैं ।। संस्कृत की सरल
हिंदी देकर जो व्याख्या प्रस्तुत की गई है, उससे विषय सीधा अंदर तक प्रवेश
कर जाता है ।।
"पंथ अनेक लक्ष्य एक" प्रकरण में विभिन्न धर्मों के मुख्य ग्रंथों से उनके
मूल उपदेशों को संगृहीत कर यह जताने का प्रयास किया गया है कि सर्वसाधारण
में धर्मों- संप्रदायों की भिन्नता, पारस्परिक विरोध की जो भावनाएँ फैली
हैं वे निराधार हैं, अज्ञानताजनित हैं ।। सभी धर्मों के मूल में मूल स्वर
एक ही है ।। अथर्ववेदादि चारों वेद, उपनिषद् भागवत पुराण, रामचरित मानस,
कोधवग्गो, दंडवग्गो आदि बौद्ध ग्रंथ, गुरुग्रंथसाहब, यहूदी भजनावली,
मिदराश, यलकुत आदि ग्रंथ, ताओ तेह किंग, लूका- मत्ती आदि ईसाई ग्रंथों के
उद्धरण, कुरान शरीफ आदि के माध्यम से यह प्रमाणित करने का प्रयास किया गया
है कि जीवनशोधन, सदाचार, सत्य ही धर्म है, अहिंसा और प्रेम,
कर्त्तव्यपरायणता, दांपत्य जीवन की पवित्रता आदि सभी विषयों पर सभी ग्रंथ
समान रूप से एक ही बात का प्रतिपादन करते हैं ।।
Buy online:
No comments:
Post a Comment