वसुधैव कुटंबकम का सैद्धांतिक आधार
मनुष्य को भगवान ने बहुत कुछ देकर इस पृथ्वी पर भेजा है ।। शारीरिक दृष्टि
से वह कई प्राणियों की तुलना में कमजोर जरूर ठहरता है, पर बौद्धिक दृष्टि
से उसके पास जो सामर्थ्य संचित है, परमात्मा ने बुद्धि और ज्ञान का- जो
बहुमूल्य उपहार उसे प्रदान किया है, वह अपने आप में इतना महत्त्वपूर्ण है
कि एक इसी के बल पर उसने संसार के समस्त प्राणियों को पीछे छोड़ दिया ।। कोई
व्यक्ति दूसरों से तुलना करके अपने को भले ही अभावग्रस्त और असहाय समझता
रहे, लेकिन वास्तविकता यह है कि वह न अभावग्रस्त है, न निर्बल और न निर्धन
।। यों रोना ही रोना हो तो- संपन्न से संपन्न व्यक्ति भी अपने पास किन्हीं
वस्तुओं के अभाव की बात सोचते हुए असंतोष की आग में जलते रह सकते हैं ।।
लेकिन वास्तविकता यह है कि दयनीय से दयनीय हालत में पड़ा रहने वाला मनुष्य
भी न अभावग्रस्त है और न दयनीय ।। अपनी महत्ता और सर्वोपरिता को प्रत्यक्ष
रूप से स्वीकार किए जाने के बाद भी मनुष्य की अंतरंग चेतना में श्रेष्ठता
का भाव छिपा हुआ है ।। यह इस बात से सिद्ध होता है कि दुखी से दुखी व्यक्ति
भी अपने दु:खों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए मरना पसंद नहीं करते ।।
भावावेश में आकर कोई व्यक्ति आत्महत्या कर ले, यह बात अलग है ।। किंतु सचाई
यह है कि लोगों की अंतरंग चेतना में मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता का भाव इस
प्रकार अपनी जड़ें जमाए हुए है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में
अपने जीवन को खोना नहीं चाहता ।।
स्थिति और बाह्य उपलब्धियों की दृष्टि से कोई व्यक्ति भले ही साधनहीन दिखाई
दे, पर यह सच है कि प्रत्येक व्यक्ति को जन्मजात रूप से सब कुछ न सही तो
भी बहुत कुछ अवश्य मिला है ।।
Buy online:
No comments:
Post a Comment