विचार परिवर्तन से व्यक्तित्व निर्माण
यह संसार विचारों का ही प्रतिरूप है ।। विचार सूक्ष्म होते हैं
।। संसार की स्थूल वस्तुओं की रचना पहले किए गए विचार के अनुसार ही होती है
।। दर्शनशास्त्र के अनुसार यह समस्त जगत परमात्मा के एक विचार का ही
परिणाम है ।। वह विचार था- "एकोऽहं बहुस्यामि" ।। कोई विचार तब ही फलित
होता है, जब उसके प्रति सच्ची निष्ठा हो और दृढ़ संकल्प हो ।। संसार में जो
उन्नति प्रगति और नए- नए परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं, वे सब विचारों के ही
परिणाम हैं ।। मनुष्य यदि झूठी कल्पनाएँ करने के स्थान पर गंभीरतापूर्वक
विचार करे और उसे पूरा करने के लिए सच्चे हृदय से प्रयत्न करे तो वह जैसे
चाहे, वैसी उन्नति कर सकता है, जितना चाहे ऊँचा उठ सकता है, बड़े- बड़े काम
करके दिखा सकता है ।। भिखारियों को सम्राट और साधारण मजदूरों को धन कुबेर
बनते विचारों के बल पर ही देखा जा सकता है ।। दृढ़ विचार और हार्दिक संकल्प
करके हम अपने व्यक्तित्व को जैसा चाहें बना सकते हैं; आवश्यकता है विचारों
के प्रति सच्ची और दृढ़ निष्ठा की ।।
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