समस्याएँ आज की समाधान कल के
सड़क पर चलने वाला कोई पगला, राहगीरों पर ईंट, पत्थरों की
मारामार मचा सकता है और कितने ही सिर और कितने ही पंजर तोड़- फोड़ कर रख
सकता है। यह सरल है। कठिनाई तब पड़ती है, जब उस टूट- फूट को नए सिरे से ठीक
करना पड़ता है। पिछले दिनों लोकमानस पर दुहरा उन्माद चढ़ा है। एक
वैज्ञानिक उपलब्धियों का और दूसरा प्रत्यक्ष को, तत्काल को ही सब कुछ मान
बैठने का। उस गहरी खुमारी और लड़खड़ा देने वाली बदहवासी में यह सोचते भी
नहीं बन पड़ा कि इस विक्षिप्तता से उन्मत्त होकर, जो कर गुजरने का आवेश चढ़
दौड़ा है, उसका क्या परिणाम होगा? अनाचारी इसी उन्मादग्रस्त स्थिति में
कुछ भी कर गुजरते हैं और पछताते तब हैं, जब कुकृत्यों के दुष्परिणाम भयानक
प्रतिक्रिया के साथ सामने आ खड़े होते हैं।
अगली शताब्दी में उज्ज्वल भविष्य की संरचना करने के लिए कुछ तो नया भी
खरीदना पड़ेगा, पर साथ ही यह भी देखना होगा कि किन कारणों से व्रिगह हुआ और
उनका सुधार बन पड़ा या नहीं। यदि इतना भर मंथन कर लिया जाए, तो समस्या का
अधिकांश हल अनायास ही निकल सकता है।
Buy online:
No comments:
Post a Comment