चेतन ,अचेतन एवं सुपर चेतन मन
मानवी काया एक विलक्षणताओं का समुच्चय है । यदि इस रहस्यमय
अद्भुत कायपिंजर को समझा जा सके व तदनुसार जीवन-साधना सम्पन्न करते हुए
अपने जीवन की रीति-नीति बनायी जा सके तो व्यक्तित्त्व सम्पन्न,
ऋद्धि-सिद्धि सम्पन्न बना जा सकता है । इसके लिए अपने स्वयं के मन को ही
साधने की व्यवस्था बनानी पड़ेगी । यदि यह सम्भव हो सके कि व्यक्ति अपने
चेतन, अचेतन व सुपरचेतन मस्तिष्कीय परतों की एनाटॉमी समझकर तदनुसार अपना
व्यक्तित्त्व विकसित करने की व्यवस्था बना ले तो उसके लिए सब कुछ हस्तगत
करना सम्भव है । यह एक विज्ञान सम्मत तथ्य है, यह मानवी मनोविज्ञान को
समझाते हुए पूज्यवर बडे़ विस्तार से इस गूढ़ विषय को विवेचन करते इसमें
पाठकों को नजर आयेंगे । मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार रूपी अन्त: करण
चतुष्टय की सत्ता से हमारा निर्माण हुआ है । यदि विचारों की व्यापकता और
सशक्तता का स्वरूप समझा जा सके व तदनुसार अपने व्यक्तित्त्व के निर्माण का
सूत्र समझा जा सके तो इस अन्त करण चतुष्टय को प्रखर, समर्थ और बलवान बनाया
जा सकता है ।
यदि अचेतन का परिष्कार किया जा सके, आत्महीनता की महाव्याधि से मुक्त हुआ
जा सके, तो हर व्यक्ति अपने विकास का पथ स्वयं प्रशस्त कर सकता है ।
उत्कृष्टता से ओतप्रोत मानवी सत्ता ही मनुष्य के वैचारिक विकास की अन्तिम
नियति है । यदि चिन्तन उत्कृष्ट स्तर का होगा तो कार्य भी वैसे बन पड़ेंगे
एवं मानव से महामानव, चेतन से सुपरचेतन के विकास की, अतिचेतन के विकास की
आधारशिला रखी जा सकेगी ।
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