धर्म और विज्ञान विरोधी नहीं, पूरक हैं
धर्म और विज्ञान दोनों ही मानव जाति की अपने-अपने स्तर की
आवश्यकता है। दोनों एक-दूसरे को अधिक उपयोगी बनाने में भारी योगदान दे सकते
हैं। जितना सहयोग एवं आदान-प्रदान संभव हो उसके लिए द्वार खुला रखा जाए,
किंतु साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि दोनों का स्वरुप और कार्य-क्षेत्र
एक-दूसरे से भिन्न हैं। इसलिए वे एक-दूसरे पर अवलंबित नहीं रह सकते और न ही
ऐसा हो सकता है कि एक का समर्थन पाए बिना दूसरा अपनी उपयोगिता में कमी
अनुभव करे।
शरीर भौतिक है, उसके सुविधा-साधन भौतिक विज्ञान के सहारे जुटाए जा सकते
हैं, आत्मा चेतन है, उसकी आवश्यकता धर्म के सहारे उपलब्ध हो सकेगी। यह एक
तथ्य और ध्यान रखने योग्य है कि परिष्कृत धर्म का नाम आध्यात्म भी है और
आत्मा के विज्ञान-अध्यात्म का उल्लेख अनेक स्थानों पर धर्म के रूप में भी
होता रहा है, अस्तु उन्हें पर्यायवाचक भी माना जा सकता है।
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