यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया- 26
यज्ञ- प्रक्रिया को अपने संपूर्ण परिप्रेक्ष्य में प्रतिपादित कर
वाड्मय के इस खण्ड में परमपूज्य गुरुदेव ने बड़े विस्तार से यज्ञोपचार की
प्रक्रिया की व्याख्या की है ।। यज्ञ एक सर्वांगपूर्ण उपचार पद्धति है-
पर्यावरण संशोधन के लिए, सूक्ष्म जगत में संव्याप्त प्रदूषण मिटाने के लिए
तथा मानव की स्थूल- सूक्ष्म हर स्तर पर चिकित्सा करने के लिए ।। सविता
देवता की उपासना गायत्री महामंत्र का प्राण है एवं उसी सविता को समर्पित
आहुतियाँ किस प्रकार अपनी मंत्र शक्ति एवं यज्ञ ऊर्जा के समन्वित स्वरूप के
माध्यम से होता को लाभ पहुँचाती है, यही यज्ञोपचार प्रक्रिया है ।।
आत्मसत्ता पर छाये कषाय- कल्मषों की सफाई से लेकर- गुणसूत्रों, क्रोमोसोम्स
जीन्स तक पर यज्ञ प्रक्रिया प्रभाव डालती है एवं इसमें किस प्रकार यज्ञ
कुण्ड एक यंत्र की भूमिका निभाकर वृहत सोम के अवतरण द्वारा सोम की- पर्जन्य
की वर्षा में एक महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, इसका वैज्ञानिक आधार क्या
है, ज्यामिती किस प्रकार यज्ञधूम्रों की बहुलीकरण प्रक्रिया को प्रभावित
करती है, यह सारा प्रतिपादन इस खण्ड में हुआ है ।।
यज्ञाग्नि व सामान्य अग्नि में अन्तर है ।। परमपूज्य गुरुदेव ने
"यज्ञोपैथी" के नाम से एक नूतन चिकित्सा पद्धति जो भविष्य की उपचार पद्धति
बनने जा रही है, को जन्म देकर वस्तुत: वैदिक विज्ञान के मूल आधार को
पुनर्जीवित किया है ।। यज्ञों से रोग निवारण में समिधाओं, शाकल्य तथा
मंत्रों का चयन कैसे किया जाता है, यह पूरी प्रक्रिया अपने में एक समग्र
विज्ञान है ।। परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं कि पृथ्वी तत्त्व का पंचभूतों से
बनी इस काया में प्राधान्य है तथा पृथ्वी सदा वायु से गंधों का शोषण करती
रहती है ।।
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