हमारे महान उत्तराधिकारी
छोटे बच्चों की शिक्षा का विषय बड़ा महत्त्वपूर्ण और साथ ही
पेचीदा भी है ।। जन्मकाल में बच्चा गीली- मिट्टी के एक लौंदे की तरह होता
है जिसको जैसा चाहे गढ़ा जा सकता है ।। कुम्हार उससे भगवान कृष्ण की मूर्ति
भी बना सकता है, हनुमानजी भी गढ़ सकता है और रावण की आकृति भी तैयार कर सकता
है, यही बात अधिकांश में छोटे बच्चों पर लागू होती है ।। उनका शरीर, मन,
प्रवृत्ति आरंभ में किसी भी तरफ मुड़ने लायक होती है और माता- पिता, अभिभावक
उसे जैसा चाहें अच्छा या बुरा, सद्गुणी या दुर्गुणी बना सकते है ।।
आप कहेंगे कि ऐसा माता- पिता कौन होगा जो अपने बच्चों को अच्छा और सद्गुणी न
बनाना चाहे ?? यों कहने को तो संसार में ऐसे चोर, बदमाश, गुंडे, लुटेरे,
ठग लोगों की भी कमी नहीं जो कुमार्ग के सिवाय और कोई रास्ता जानते ही नहीं
और अपनी संतान को भी वैसी शिक्षा देते है ।। यदि ऐसे अपराधी श्रेणी वालों
की बात छोड़ भी दी जाय तो भी प्राय: यही देखते है कि लोग अपने बच्चों को
सुशील, सद्गुणी देखना तो चाहते हैं, पर उसके लिए कोई प्रयत्न नहीं करते ।।
वे स्वयं ही अपनी सुविधा या परिस्थिति के ख्याल से बच्चे की आदतों को शुरू
से ही बिगाड़ देते है, उनके सामने कभी श्रेष्ठ आदर्श उदाहरण रखने की चेष्टा
नहीं करते और जब बालक अनुचित मार्ग पर चलने लगता है तो उसी को दोष देने
लगते हैं ।। सही बात तो यह है कि बच्चे का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक,
नैतिक, चारित्रिक सब प्रकार का विकास माता- पिता या अभिभावकों के व्यवहार
पर ही निर्भर रहता है ।।
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