Friday, 10 February 2017

धन का सदुपयोग

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=38गायत्री मंत्र का चौथा अक्षर वि हमको धन के सदुपयोग की शिक्षा देता है-वित्त शक्तातु कर्तव्य उचिताभाव पूर्तयः । न तु शक्ला न या कार्य दर्पोद्धात्य प्रदर्शनम् । । अर्थात- धन उचित अभावों की पूर्ति के लिए है, उसके द्वारा अहंकार तथा अनुचित कार्य नहीं किए जाने चाहिए । धन का उपार्जन केवल इसी दृष्टि से होना चाहिए कि उससे अपने तथा दूसरों के उचित अभावों की पूर्ति हो । शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के विकास के लिए सांसारिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति के लिए धन का उपयोग होना चाहिए और इसीलिए उसे कमाना चाहिए । धन कमाने का उचित तरीका वह है जिसमें मनुष्य का पूरा शारीरिकऔर मानसिक श्रम लगा हो जिसमें किसी दूसरे के हक का अपहरण न किया गया हो, जिसमें कोई चोरी, छल, प्रपञ्च, अन्याय, दबाव आदि का प्रयोग न किया गया हो । जिससे समाज और राष्ट्र का कोई अहित न होता हो ऐसी ही कमाई से उपार्जित पैसा फलता-फूलता है और उससे मनुष्यकी सच्ची उन्नति होती है । जिस प्रकार धन के उपार्जन में औचित्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है, वैसे ही उसे खर्च करने में, उपयोग में भी सावधानी बरतनी चाहिए । अपने तथा अपने परिजनों के आवश्यक विकास के लिए धन का उपयोग करना ही कर्तव्य है । शानशौकत दिखलाने अथवा दुर्व्यसनों की पूर्तिके लिए धन का अपव्यय करना मनुष्य की अवनति अप्रतिष्ठा और दुर्दशाका कारण होता है । 

 

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