गायत्री की शक्ति और सिद्धि
संसार में जितना भी वैभव, उल्लास दिखाई पड़ता है या प्राप्तकिया
जाता है वह शक्ति के मूल्य पर ही मिलता है । जिसमें जितनी क्षमता होती है
वह उतना ही वैभव उपार्जित कर लेता है । जीवन में शक्ति का इतना महत्वपूर्ण
स्थान है कि उसके बिना कोई आनन्द नहीं उठाया जा सकता । यहाँ तक कि अनायास
उपलब्ध हुए भोगों को भीनही भोगा जा सकता । इंद्रियों में शक्ति रहने तक ही
विषम भोगों का सुक्ष प्राप्त किय जा सकता है । ये किसी प्रकार अशक्त हो
जाँय तो आकर्षक से आकर्षक भोग भी उपेक्षणीय और घृणास्पद लगते है । नाड़ी
संस्थान की क्षमता क्षीण हो जाय तो शरीर का सामान्य क्रिया कलाप भी ठीक तरह
नहीं चल पाता । मानसिक शक्ति घट जाने पर मनुष्य की गणना विक्षिप्तों और
उपहासास्पदों में होने लगती है । धनशक्ति न रहनेपर दर-दर का भिखारी बनना
पड़ता है । मित्रशक्ति न रहने पर एकाकी जीवन सर्वथा निरीह और निरर्थक होने
लगता है । आत्मबल न होने पर प्रगति के पथ पर एक कदम भी यात्रा नहीं बढ़ती ।
जीवनो द्देश्य की पूर्ति आत्मबल से रहित व्यक्ति के लिए सर्वथा असंभवही है ।
अतएव शक्ति का संपादन भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में सफलता
प्राप्त करने के लिए नितांत आवश्यक है । इसके साथ यह भी जान ही लेना चाहिए
कि भौतिक जगत में पंचभूतों को प्रभावित करने तथा आध्यात्मिक, विचारात्मक,
भावात्मक और संकल्पात्मक जितनी भी शक्तियाँ है उन सब का मूल उद्गम एवं असीम
भण्डार वह महत्तत्व ही है जिसे गायत्री के नाम से संबोधित किया जाता है ।
भारतीय मनीषियों ने विभिन्न शक्तियों को देव नामों से संबोधित किया है ।
यह समस्त देव शक्तियाँ उस परम् शक्ति की किरणें ही हैं उनका अस्तित्व इस
महत्व के अन्तर्गत ही है ।
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