आध्यात्मिक काम-विज्ञान
नर और नारी के बीच पाए जाने वाले प्राण और अग्नि और सोम; स्वाहा
और स्वधा तत्त्वों का महत्त्व, सामान्य नहीं असामान्य है । सृजन और उद्भव
की उत्कर्ष और आह्लाद की असीम संभावनाएँ उसमें भरी पड़ी हैं, प्रजा उत्पादन
तो उस का बहुत ही सूक्ष्म या स्थूल और अति तुच्छ परिणाम है । सृष्टि के मूल
कारण और चेतना के आदि स्रोत, इन द्विधा संस्करण और संचरण का ठीक तरह
मूल्यांकन किया जाना चाहिए और इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि, इनका
सदुपयोग किस प्रकार विश्वकल्याण की सर्वतोमुखी प्रगति में सहायक हो सकता है
और उनका दुरुपयोग मानवजाति के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार
क्षीण-विकृत करके, विनाश के गर्त में धकेलने के लिए दुर्दांत दैत्य की तरह
सर्वग्रासी संकट उत्पत्र कर सकता है, कर रहा है।
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