सात्विक जीवनचर्या और दीर्घायुष्य
स्वास्थ्य रक्षा के नियमों में सभी सरल और स्वाभाविक हैं। उनमें न
कोई कठोर है और न कष्ट साध्य। कठिन तो दुष्कर्म होते हैं। चोरी, उठाईगीरी,
छल आदि दुष्कर्म करने के लिए असाधारण चतुरता और कुशलता की आवश्यकता पड़ती
है, किन्तु सच्चाई, ईमानदारी की राह पर चलना किसी अल्प बुद्धि वाले के लिए
भी सरल है। इसी प्रकार प्रकृति प्रेरणा के अनुरूप जीवन- यापन पशु- पक्षी भी
कर लेते हैं और आजीवन निरोग बने रहते हैं। सृष्टि के सभी जीवधारी जन्मते,
बढ़ते, वृद्ध होते और मरते हैं, पर बीमार कोई नहीं पड़ता। अन्य पशु- पक्षियों
में कदाचित ही कभी कोई रोगी देखा गया हो। संसार में एक ही मूर्ख प्राणी
है, जो आए दिन बीमार पड़ता है, वह है -मनुष्य। उसके चंगुल में फँसे हुए
पालतू पशु भी बीमार होते पाए जाते हैं। मनुष्य ही है जो स्वयं बीमार पड़ता
है और अपने संपर्क अधिकार के अन्य प्राणियों को बीमार करता है। यह अभिशाप
असंयम का- प्रकृति प्रेरणा के विपरीत आचरण करने का है। यदि कुचाल चलने की
मूर्खता को छोड़ दिया जाय, तो सृष्टि के अन्य प्राणियों की तरह मनुष्य के
लिए सभी सक्षम और निरोग जीवनयापन नितांत सरल एवं संभव हो सकता है।
जब वह (कार्नेरी) मर रहा था, तो उसके ओंठ बुदबुदाए।
“आपका अन्तिम संदेश क्या है ?”
अटक-अटक कर लड़खड़ाते शब्दों में वे बोले- “जो मनुष्य मेरे आत्म अनुभूत जीवन
के सात मूल मंत्रों के अनुसार जीवन संचालित करेगा, मेरा आशीर्वाद है कि वह
कम से कम सौ साल की स्वस्थ्य जिन्दगी भोग कर सुखपूर्वक संसार से विदा
होगा।
"आपके सात अनुभूत महामंत्र क्या हैं ?”
वे बोले - गिन लो और इन्हें भूलो मत । १. निसर्ग सामंजस्य, २. समय का
संयम, ३. युक्त आहार , ४. परिष्कृत विचार, ५. पवित्र आचार , ६.
पुरुषार्थ और ७. परोपकार ।
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