Thursday, 16 February 2017

आवेशग्रसत होने से अपार हानि

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आवेशग्रस्त होने से अपार हानि

बात- बात पर उद्विग्न न हों

जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए तत्संबंधी योग्यता, अनुभव के साथ- साथ मानसिक संतुलन, शांत मस्तिष्क की भी अधिक आवश्यकता होती है ।। कोई व्यक्ति कितना ही योग्य, अनुभवी, गुणी क्यों न हो, यदि बात- बात पर उसका मन आँधी- तूफान की तरह उद्वेलित, अशांत हो जाता हो तो वह जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएगा ।। उसकी शक्तियाँ व्यर्थ में ही नष्ट हो जाएँगी और भली प्रकार से वह अपने काम पूरा नहीं कर सकेगा ।। प्रत्येक छोटे से लेकर बड़े कार्यक्रम शांत और संतुलित मस्तिष्क के द्वारा ही पूरे किए जा सकते हैं ।। संसार में मनुष्य ने अब तक जो कुछ भी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, उसके मूल में धीर- गंभीर, शांत मस्तिष्क ही रहे हैं ।। कोई भी साहित्यकार, वैज्ञानिक कलाकार व शिल्पी, यहाँ तक कि बढ़ई, लुहार, सफाई करने वाला श्रमिक तक अपने कार्य तब तक भलीभाति नहीं कर सकते, जब तक उनकी मनःस्थिति शांत न हो ।। कोई भी साधना स्वस्थ, संतुलित मनोभूमि में ही फलित हो सकती है ।। जो क्षण- क्षण में उत्तेजित हो जाता हो, सामान्य- सी घटनाएँ जिसे उद्वेलित कर देती हों, जिसका मन अशांत और विक्षुब्ध बना रहता हो, ऐसा व्यक्ति कोई भी कार्य भली प्रकार से नहीं कर सकेगा और न वह अपने काम के बारे में ठीक- ठीक सोच- समझ ही सकेगा ।। 

 

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