परिष्कृत अध्यात्म हमारे जीवन में उतरे
देवियो, भाइयो! मध्यकालीन परंपरा में भौतिक आधार पर भगवान को
प्राप्त करने की कोशिश की जाने लगी और भगवान को भौतिक बना दिया गया । भगवान
को भौतिक बनाने से क्या मतलब है ? भौतिक से मतलब यह है कि एक इनसान एक
आदमी जैसा होता है, भगवान का स्वरूप भी एक आदमी जैसा बना दिया गया । एक
आदमी जैसे मिट्टी, पानी, हवा का बना हुआ होता है, लगभग वही स्वरूप भगवान का
बना दिया गया । और भगवान की इच्छाएँ ? इच्छाएँ वही बना दी गईं, जो कि एक
आदमी की होती हैं । आदमी खाना माँगता है और भगवान प्रसाद माँगता है । लाइए
सवा रुपये का प्रसाद, हनुमान जी को लड्डू खिलाइए । हनुमान जी का पेट भर
दीजिए और काम हो जाएगा । भगवान जी को कपड़ा पहनाइए । क्यों ? आपको कपड़े
पहनने चाहिए न, इसलिए भगवान जी को भी कपड़े पहनाइए । गायत्री माता पर साड़ी
चढाइए । और क्या-क्या दें ? जो कुछ भी, हमको खुशामद की जरूरत हैं । आप
हमारी निंदा करेंगे तो हम आपको गालियाँ सुनाएँगे । आपको हमसे कुछ काम
निकालना है तो आप हमारी चापलूसी कीजिए खुशामद कीजिए पंखा झलिए हाथ जोडिए
पाँव छूइए और पैर धोइए । हम व्यक्ति हैं, मनुष्य हैं इसलिए हमारे लिए भेंट
लेकर के आइए । पान खिलाइए सुपारी खिलाइए इलायची दीजिए पैसा दीजिए । कुछ
दीजिए हमको तो हम आपसे प्रसन्न हो सकते हैं ।
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