आराम नहीं काम कीजिए
उपनिषद्कार ने कहा है - "कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं
समा:।" कर्म करते हुए हम सौ वर्ष जीने की इच्छा करें ।। आराम करते हुए मौज-
मजा करते हुए चैन की वंशी बजाते हुए सौ वर्ष जीने के लिए क्यों नहीं कहा
उपनिषद् के ऋषि ने ? इसीलिए कि श्रम के अभाव में आराम, आनंद, यहाँ तक कि सौ
वर्ष जीने का अधिकार भी छिन जाता है हम से ।। श्रम के साथ ही जीवन अपनी
महानता और समृद्धियों के परदे खोलता है ।। जीवन की पूर्णता प्राप्त करनी है
तो परिश्रम करना पड़ेगा ।।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है- "श्रम ही जीवन है ।। जिस समाज में श्रम को महत्त्व नहीं मिलता वह जल्द ही नष्ट हो जाता है ।"
अमेरिका के धनकुबेर हेनरीफोर्ड ने लिखा है- "हमारा काम हमें जीने के साधन
ही प्रदान नहीं करता वरन स्वयं जीवन प्रदान करता है ।"
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