सुख चाहें तो यों पाएँ
आशा और उत्साह कहीं से लाने अथवा आने वाली वस्तुएँ नहीं हैं । यह
दोनों तेज आपके अतःकरण में सदैव ही विद्यमान रहते हैं । हाँ, आवश्यकता के
समय उनको जगाना तथा पुकारना आवश्यक पड़ता है । जीवन की कठिनाइयों तथा
आपत्तियों से घबरा कर अपने इन अंतरंग मित्रों को भूल जाना अथवा उनका साथ
छोड़ देना बहुत बड़ी भूल है । ऐसा करने काअर्थ है कि आप अपने दुर्दिनों को
स्थाई बनाते हैं, अपनी कठिनाइयों को पुष्ट तथा व्यापक बनाते हैं । किसी भी
अंधकारमें, किसी भी प्रतिकूलता अथवा कठिनाई में अपने आशा, उत्साह के समन्वय
को कभी मत छोडिएगा । कठिनाईयाँ आपका कुछ नहीं कर सकेंगी ।
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