जीवन साधना के सोपान्
अपने जीवन को सार्थक बनाने की दृष्टि से भी और विश्वहित साधना का
पुण्य-परमार्थ करने की दृष्टि से भी हमें सबसे पहले यह प्रयत्न करना चाहिए
कि अपना व्यक्तित्व निर्दोष, निर्मल एवं निष्पाप हो । दोष, पाप और मल ही
हमारी प्रगति में सबसे बड़े बाधक हैं । उन्हें जितना ही हटाया या मिटाया
जावेगा, उतनी ही अन्तर्ज्योति प्रदीप्त होती चलेगी और उसके प्रकाश में जीवन
का प्रत्येक वस्तु प्रकाशवान् बनता चलेगा । इस प्रकाश में भौतिक एवं
आत्मिक प्रगति की सभी समस्याएँ अपने आप ही सुलझती चलेंगी ।
प्रस्तुत संग्रह में जीवन साधना के सोपान विषय पर आधारित प्रेरक सद्वाक्यों
का संकलन परम पूज्य गुरुदेव के साहित्य में से किया गया है । इस आदर्श
वाक्यों का उपयोग गाँव-शहर के सभी गली, मुहल्लों, घरों, चौराहों, पार्किंग
स्थलों, शक्तिपीठों, प्रज्ञामण्डलों, महिला मण्डलों, सार्वजनिक स्थानों,
नारी केन्द्रों अथवा उन-उपयुक्त स्थानों में किया जाना चाहिए जहाँ से
जनसामान्य प्रेरणाप्रद विचारों से शिक्षा ग्रहण करें ।
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