वाक् शक्ति और उसका नियोजन
मनोभावों को अभिव्यक्त करने के सर्वश्रेष्ठ साधन के रूप में
परमात्मा ने मनुष्य को वाणी की क्षमता दी है । यह वह माध्यम है जिसके
द्वारा हम संसार को अपना मित्र बना सकते हैं अथवा शत्रु । बोलना तो सभी
जानते हैं किंतु कहाँ और क्या बोलना चाहिए यह कला कम ही व्यक्तियों को आती
है । सांसारिक सफलताओं में बहुत बड़ा योगदान वाक्शक्ति का होता है ।
तत्त्ववेत्ताओं ने शब्द को शिव और वाणी को शक्ति कहा है । इनका अनुग्रह जिस
पर हो उसे अमृतत्व उपभोक्ता ही कहना चाहिए ।
किस प्रयोजन के साथ, किस मनःस्थिति में, किस विधि व्यवस्था के साथ, किस
शब्द का उच्चारण करने से उसकी प्रतिक्रिया भौतिक पदार्थों पर, व्यक्ति पर
क्या होती है, इस "शब्द विज्ञान" का सूक्ष्म अवगाहन करके ऋषियों ने मंत्र
विद्या का आविष्कार किया । इसे वाणी का श्रेष्ठतम प्रयोग ही कह सकते हैं ।
जो वाणी का स्वरूप और उसका उपयोग जान सका, वह बहिरंग में सुख और अंतरंग में
शांति उपलब्ध करने में सफल होकर ही रहा है ।
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