जीवन पथ के प्रदीप
जीवन पथ के प्रदीप आपको उजियारे की सौगात सौंपने के लिए आए हैं ।
जीवन के लिए उजियारा बहुत जरूरी है । पथ पर उजियारा न हो तो अनायास ही भय,
भ्रम और भटकन घेर लेते हैं । अँधेरे में, मन में अचानक ही अवसाद, विषाद का
कुहाँसा छा जाता है । खिन्नता-विपन्नता ऐसे में जीवन का जैसे अविभाज्य अंग
बन जाती है ।
आज की दशा कुछ ऐसी ही हो गयी है । मनुष्य के जीवन पथ, उसकी चेतना को
अंधियारी ने घेर लिया है । वह भयभीत है, भ्रमित है, विषादग्रस्त है । अपने
ही भ्रम में उसने स्वयं की छाया को भूत समझ लिया है और भयक्रान्त हो गया है
। इसी भय और भ्रम में फँस कर उसने अपने से, अपनों से यद्ध छेड़ दिया है ।
लगातार चोटिल होने के बावजूद वह लड़े जा रहा है और उसके घाव बड़े जा रहे हैं ।
अंधियारे के कारण न तो किसी को सूझ रहा है और न समझ में आ रहा है कि वह
किसी और से नहीं बल्कि अपने से और अपनों से लड़े जा रहा है । चोटें बढ़ रही
हैं, घाव रिस रहे, पर इन्सान का उन्माद व उसका अवसाद कम नहीं हो रहा है ।
इनमें कमी तभी आ सकती है, जबकि जीवन पथ का अंधियारा घटे, हटे और मिटे ।
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