Sunday, 19 February 2017

प्रेम योग

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=590आज भी जिसने एक बड़े काठ को काट कर छेद कर डाला था, वह भ्रमर सायंकाल तक एक कमल के फूल पर जा बैठा।। कमल के सौंदर्य और सुवास में भ्रमर का मन कुछ ऐसा विभोर हुआ कि रात हो गई, फूल की बिखरी हुई पंखुडियां सिमटकर कली के आकार में आ गई ।। भौंरा भीतर हो ही बंद होकर रह गया ।। रात भर प्रतीक्षा की,भ्रमर चाहता तो उस कली को कई और से छेद करके रात भर में कई बार बाहर आता और फिर अंदर चला जाता है पर वह तो स्वयं भी कली की एक पंखुडी को गया ।। प्रात:काल सूर्य की किरणे उस पुष्प पर पड़ी तो पंखुडियां फिर खिली और वह भौंरा वैसे ही रसमग्न अवस्था में बाहर निकल आया ।।

यह देखकर संत ज्ञानेश्वर ने अपने शिष्यों से कहा- देखा तुमने ।। प्रेम का यह स्वरूप समझने योग्य है ।। भक्ति कोई नया गुण नहीं, वह प्रेम का ही एक स्वरूप है ।। जब हम परमात्मा से प्रेम करने लगते हैं तो द्रवीभूत अंतःकरण सर्वत्र व्याप्त ईश्वरीय सत्ता में सविकल्प तदाकार रूप धारण कर लेता है, इसी को भक्ति कहते हैं ।। भगवान निर्विकल्प और प्रेमी सविकल्प दोनों एक हो जाते हैं, द्वैत भाव भी अद्वैत हो जाता है ।। इसी बात को शास्त्रकार ने इस प्रकार कहा है- द्रवी भाव पूर्विका मनसो भगवदेकात्मा रूपा सविकल्प वृत्तिर्भक्तिरिती ।। 

 

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