समाज का मेरुदण्ड सशक्त परिवार तंत्र -48
प्रजातंत्र की एक सशक्त इकाई के रूप में परिवार संस्था को माना
गया है। व्यक्ति और समाज की मध्यवर्ती महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में परिवार
का नाम लिया जाता है। व्यक्ति को उठाने-गिराने में पारिवारिक वातावरण का
जितना प्रभाव पड़ता है, उतना अन्य समस्त साथियों एवं माध्यमों के संयुक्त
साधनों का कदाचित ही पड़ता है। सुसंस्कृत परिजनों के बीच मनुष्य गरीबी में
भी जीवनयापन कर सकता है; परन्तु गृह–कलह के बीच तो संपन्नता भी नीरस और
असह्य हो जाती है। भारतीय संस्कृति की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता रही है कि
इसमें परिवार संस्था को अत्याधिक महत्व दिया जाता रहा है। परिवार निर्माण
की, समाज के नव-निर्माण एवं राष्ट्रोत्थान की सदा से आवश्यकता समझी जाती
रही है। समाज के विकास के लिए उसके मेरुदण्ड परिवार के समग्र निर्माण को
अपने कार्यक्रम में प्रधानता देने के कारण ही हमारे ऋषिगण परिवार संस्था को
एक आदर्श इकाई बनाकर हमें धरोहर के रूप में दे गए। श्रेष्ठ व्यक्तित्वों
के समाज रूपी उद्यान में सुगंधित पुष्पों के समान खिलने के लिए परिवार ही
नन्दन वन की भूमिका निभाता है। परमपूज्य गुरुदेव ने जीवन भर एक ही बात पर
जोर दिया कि समाज में श्रेष्ठ सद्गृहस्थ अधिक से अधिक संख्या में विकसित
हों, ताकि सुसंततियाँ जन्म लें और सतयुगी समाज की पृष्ठभूमि बन सके।
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