परिवार को सुव्यवस्थित कैसे बनाएँ ?
परिवार अर्थात सहकारी परिकर
व्यक्ति और समाज की मध्यवर्ती कड़ी है - परिवार व्यक्ति को अपनी सूझ
व्यवस्था, क्षमता, सुसंस्कारिता आदि गुणकर्म- स्वभाव से संबंधित विशेषताएँ
बढ़नी पड़ती हैं। इनका अभ्यास न होने पर कोई किसी क्षेत्र में प्रगति नहीं
कर सकता। जीवनयापन की सुनियोजित विधि−व्यवस्था ही समग्र साधना है, इसे
एकाकी नहीं क्रिया जा सकता ।। प्रयोग- परीक्षण और अभ्यास के लिए कोई सुविधा
संपत्र सुनियोजित तंत्र चाहिए। ऐसी प्रयोगशाला निकटतम क्षेत्र में नितांत
सरलतापूर्वक उपलब्ध हो सकने वाली परिवार व्यवस्था ही है ।।
समाज के साथ समुचित तालमेल बिठाने दो लिए किसी न किसी प्रकार का अनुभव-
अभ्यास करना ही होता है। दूसरों को अनुकूल बनाने, उनकी स्थिति समुन्नत करने
तथा सुधार प्रयोजन के लिए संघर्ष करने जैसे जितने ही कार्य करने पड़ते
हैं। कितने ही अनुभव एकत्रित करने और प्रयोग अभ्यासों में प्रवीणता प्राप्त
करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए क्या विद्यालय में प्रवेश पाया जाए ?
कितने दिन में इस प्रकार का पाठ्यक्रम पूरा जिया जाए ? इसके उत्तर में यही
कहा जा सकता है कि यह समस्त सुविधाएँ और परिस्थितियों परिवार परिकर में सहज
उपलब्ध हैं, यदि मनोयोग पूर्वक प्रयोग परिणामों का विश्लेषण- विवेचन करते
हुए उसी क्षेत्र में सही रीति- नीति अपनाई जा सके। कृत्यों के परिणामों पर
गंभीरतापूर्वक विचार करते रहा जाए तो उस शिक्षा की समग्र आवश्यकता पूरी हो
सकती है, जो सामाजिक सुसंतुलन उपलब्ध करने और अभीष्ट सहयोग प्राप्त होते
रहने के लिए नितांत आवश्यक है।
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