संतान के प्रति कर्तव्य
गायत्री मंत्र का चौबीसवाँ अक्षर "या" हमको संतान के प्रति हमारी जिम्मेदारी का ज्ञान कराता है ।
या यात्स्वोत्तर दायित्वं निवहन जीवने पिता ।
कुपितापि तथा पाप: कुपुत्रोऽस्ति यथा तत: । ।
अर्थात- “पिता संतान के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ठीक प्रकार से
निवाहे । कुपिता भी वैसा ही पापी होता है जैसा कि कुपुत्र ।"
जो अधिक समझदार, बुद्धिमान होता है उसका उत्तरदायित्व भी अधिक होता है ।
कर्तव्य पालन में किसी प्रकार की ढील, उपेक्षा एवं असावधानी करना भी अन्य
बुराइयों के समान ही दोष की बात है । इसका परिणाम बड़ा घातक होता है ।
अक्सर पुत्र, शिष्य, स्त्री, सेवक आदि के बिगड़ जाने, बुरे होने,
अवज्ञाकारी एवं अनुशासन हीन होने की बहुत शिकायतें सुनी जाती हैं। इन
बुराइयों का बहुत कुछ उत्तरदायित्व पिता, गुरु, पति, शासक और संरक्षकों पर
भी होता है । व्यवस्था में शिथिलता करने, बुरे मार्ग पर चलने का अवसर
देने, नियत्रंण में सावधानी न रखने से अनेक निर्दोष व्यक्ति भी बिगड़ जाते हैं।
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