Ramayan Ki Pragatishil Prernayn-32
प्रस्तुत खंड रामचरितमानस से प्रगतिशील प्रेरणाएँ रामचरितमानस के
प्रेरक तत्त्व, वाल्मीकि रामायण, रामायण में परिवारिक आदर्श आदि पूज्यवर
की प्रेरणानुसार संकलित पुस्तकों का सम्मिलित रूप है ।। रामायण को भारतीय
धर्म का प्राण कहा जाता है ।। भारत के हर ग्राम में श्रीराम का निवास है
क्योंकि वे आदर्शों के प्रतिनिधि, मर्यादापुरुषोत्तम हैं ।। भारत की
सांकृतिक चेतना सुगम- जन की बोली अवधी में लिखी गई रामचरितमानस से पूरी तरह
अनुप्राणित है ।। इस गहराई तक इस ग्रंथ की पैठ घर- घर में है कि हमारा
दैनंदिन जीवन इस ग्रंथ से- इसके पात्रों के जीवन चरित्र से प्रभावित होता
प्रतीत होता है ।। रामचरितमानस संभवत अधिक लोकप्रिय इसलिए हुआ कि यह जन- जन
की भाषा में लिखा गया था ।। तुलसीदास की यह रचना इस राष्ट्र की ऐसी
सांस्कृतिक धरोहर है जिस पर सामाजिक वर्जनाओं - सद्गृहस्थ परंपराओं तथा
पिता - पुत्र भ्राता- भ्राता के संबंधों को आधारित माना जा सकता है ।। यह
अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस ग्रंथ ने हमारे पारिवारिक आदर्शों को बनाए रखने
में जितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उतनी और किसी की नहीं रही है ।।
इसी की वजह से हमारे यहाँ दांपत्य जीवन की शुचिता बनी रही एवं पश्चिम की
तरह परिवार संस्था टूटी नहीं ।।
परमपूज्य गुरुदेव ने ग्रामीण क्षेत्रों में, जो कि बहुसंख्य भारत का
प्रतिनिधित्व करता है गायत्री का प्रचार- प्रसार करने के हाथ- साथ युग-
उद्बोधन की प्रक्रिया में जिसका आश्रय सर्वाधिक लिया है - वह रामचरितमानस
है ।। यों तो वाल्मीकि रामायण जो कि संस्कृत में लिखी गई है को भी एक
महत्त्वपूर्ण स्थान हमारी ग्रंथनिधि में प्राप्त है किंतु यह जन - जन की
भाषा नहीं थी ।। उसकी प्रेरणाओं को पूज्यवर ने हिंदी में प्रस्तुत कर उसे
लोक- मानस के लिए सुगम बना दिया ।।
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