Tuesday, 7 February 2017

संयम-हमारी एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता

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राम- रावण का युद्ध का प्रथम दौर आरंभ हुआ ।। रावण ने अपने सर्वोच्च सेनापति मेघनाद को ही सबसे पहले लड़ने भेजा ।। वह मेघनाद जिस पर रावण के युद्ध का, उसकी विजय का पूरा- पूरा दारोमदार था ।। मेघनाद को आता देख राम पीछे हट गए और बोले, लक्ष्मण, तुम्हें ही मेघनाद से युद्ध करना है ।

कैसी विचित्र बात थी! अपार शक्तिशाली राम को पीछे क्यों हटना पड़ा मेघनाद से और अकेले लक्ष्मण को ही क्यों उसका सामना करने भेजा ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए राम ने ही कहा है, "लक्ष्मण, मेघनाद बारह वर्ष से तप कर रहा है, ब्रह्मचारी है और तुमने चौदह वर्षों से स्त्री का मुँह तक नहीं देखा ।। मेरे साथ रहकर तपस्वी, संयमी जीवन बिताया ।। इसलिए तुम ही मेघनाद को हरा सकते हो ।। मैं तो गृहस्थ हूँ।" और सचमुच लक्ष्मण ही उसे हरा सके ।। मेघनाद को इंद्रजीत कहा जाता है ।। इसका तात्पर्य वस्तुत: अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लेने से है ।।

पितामह भीष्म के बारे में कौन हिंदू जानता न होगा ।। महाभारत का वह घनघोर युद्ध जिसमें श्रीकृष्ण को भी अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ी, उनके समक्ष ।। हनुमान से लेकर महर्षि दयानंद, विवेकानंद तथा बहुत से महापुरुष संसार में जो कुछ कार्य कर सके, उसका मूल आधार उनका संयमी ब्रह्मचर्यपूर्ण जीवन ही था।। स्वयं महात्मा गांधी का जीवन उस समय से प्रकाश में आया, जब से उन्होंने अखंड संयम, ब्रह्मचर्य की धारणा की ।।

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