Sunday, 19 February 2017

परदोष दर्शन और अहंकार से बचें

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=1016यह सारा संसार गुण- दोषमय है।। संसार की कोई भी वस्तु तथा वाणी सर्वथा गुणसंपन्न अथवा दोषमुक्त नहीं है ।। सभी में कुछ न कुछ गुण और कुछ न कुछ दोष मिलेगा ।। परमात्मा ही अकेला पूर्ण और दोषरहित है ।। अन्य सब कुछ गुण- दोषमय एवं अपूर्ण है ।।

सामान्यत: मनुष्यों में दोष- दर्शन का भाव रहा करता है ।। इसी दोष के कारण वे अच्छी से अच्छी वस्तु में, यहाँ तक कि परमात्मा में भी दोष निकाल लेते हैं ।। दोष- दर्शन करते रहने वाला व्यक्ति संसार में किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर सकता ।। उसकी सारी शक्ति और सारा समय दूसरों के दोष देखने तथा उनकी खोज करने में लगे रहते हैं ।। दूसरों की आलोचना करना, उनके कार्यों तथा व्यक्तित्व पर टीका- टिप्पणी करना, उनके दोषों की गणना करना, उसका एक व्यसन बन जाता है ।। दोषदर्शी व्यक्ति निस्संदेह बड़े घाटे में रहता है ।।

छिद्रान्वेषक व्यक्ति को संसार में कुरूपता के सिवाय और कुछ दीखता ही नहीं ।। किसी बात में सौंदर्य देख सकना उनके भाग्य में होता ही नहीं ।। उसे अच्छी से अच्छी पुस्तक पढ़ने को दीजिए और उसके बारे में पूछिए तो वह बड़े अनमने मन से यही कहेगा- हाँ पुस्तक को अच्छा कह लीजिए किंतु वास्तव में वह श्रेष्ठ पुस्तकों की सूची में रखने योग्य नहीं है ।। इसकी भाषा अच्छी है पर विचार निम्न कोटि के हैं ।। विचार अच्छे हैं तो भाषा शिथिल है ।। भाषा तथा विचार दोनों अच्छे हैं तो विषय योग्य नहीं है और यदि ये तीनों बातें अच्छी हैं, तो पुस्तक बड़ी है उसका मेकअप, गेटअप अच्छा नहीं है ।। 

 

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