सत्य को पूर्वाग्राहों में न बाँधें
सूरज इतना छोटा नहीं है कि उसे एक छोटे कमरे में बंद किया जा सके
।। समग्र सत्य इतना तुच्छ नहीं है कि किन्हीं मनुष्यों का नगण्य- सा
मस्तिष्क उसे पूरी तरह अपने में समाविष्ट कर सके ।। समुद्र बहुत बड़ा है,
उसे चुल्लू में लेकर हममें से कोई भी उदरस्थ नहीं कर सकता ।। सत्य को जितना
हमने जाना है, हमारी समझ और दृष्टि के अनुसार वह सत्य हो सकता है- उस पर
श्रद्धा रखने का हर एक को अधिकार है किंतु इससे आगे बढ़कर यदि ऐसा सोचा
जाने लगा कि अन्य लोग जो सोचते हैं, वह सब कुछ मात्र असत्य ही है, तो यह
पूर्वाग्रहपूर्ण मान्यता सत्य की अवमानना ही होगी ।।
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