Thursday, 16 February 2017

कठिनाइयों की कसौटी पर खरे उतरें

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=1022सृष्टि-संचालन के सार्वभौम नियमों के अनुसार जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन होते रहना एक स्वाभाविक बात है । दिन के बाद रात और रात के बाद दिन होता है । वर्षा के बाद शरद और इसके पश्चात ग्रीष्म ऋतु का आगमन भी निश्चय ही होता है । सूर्य, चंद्र एवं अन्य ग्रह भी एक नियमबद्ध गति में चलते हैं । इसी तरह मानव जीवन भी इन सार्वभौम नियमों के अंतर्गत सदैव एकसा नहीं रहता । मनुष्य की इच्छा हो या न हो, जीवन में भी परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आती रहती हैं । आज उतार है तो कल चढ़ाव । चढ़े हुए गिरते हैं और गिरे हुए उठते हैं । आज उँगली के इशारे पर चलने वाले अनेक अनुयायी हैं तो कल सुख-दुःख की पूछने वाला एक भी नहीं रहता । रंक कहाने वाला एक दिन धनपति बन जाता है तो धनवान निर्धन बन जाता है । जीवन में इस तरह की परिवर्तनशील परिस्थितियाँ आते-जाते रहना नियतिचक्र का सहज स्वाभाविक नियम है । इनसे बचा नहीं जा सकता, इन्हें टाला नहीं जा सकता ।

एकांगी विचारप्रेरित मनुष्य इस नियति के विधान को नहीं समझ पाता । वह अपनी इच्छा-कामना के अनुकूल परिस्थितियों में ही सुख का अनुभव करता है तो विपरीत परिस्थितियों में दुःखी हो जाता है । अधिकांश व्यक्ति सुख, सुविधा, संपन्नता, लाभ, उन्नति आदि में प्रसन्न और सुखी रहते हैं किंतु दुःख, कठिनाई, हानि आदि में दुःखी और उद्विग्न हो जाते हैं । किंतु यह मनुष्य के एकांगी दृष्टिकोण का परिणाम है और इसी के कारण कठिनाई, मुसीबत, कष्ट आदि शब्दों की रचना हुई । 

 

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